घर-आंगन में फुदकने-चहकने वाली गौरैया अब ढूंढे नहीं मिलती।एक जमाना था जब दिन की शुरुआत गौरैया चिड़िया से हुआ करती थी। इंसान का सबसे करीबी पक्षी गौरैया रही है।गौरैया नाम सुनते ही पुरानी पीढ़ी को घर-आगन में चहचहाते इस पक्षी का याद आ जाएगा। लेकिन सामाजिक समझे जाने वाली यह चिड़िया अब लगभग लुप्त हो गई है। यदा कदा कहीं दिख जाती है।अब शहरों और कस्बों से दूर हो गई है। बढ़ते शहरीकरण के साथ बदलते मकानों के ढांचों से ही ऐसा हुआ है। नए जमाने के मकानों में गोरैया के घोंसले बनाने की जगह ही नहीं। आंगन परिसर भी उसी तरह से हैं। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में भी मकान के ढांचे बदल रहे हैं।कम होती हरियाली और घरों केआसपास बने विषाक्त वातावरण ने गौरैया को गायब ही कर दिया है। मोबाइल टावरों से निकलने वाले रेडिएशन से भी पक्षियों पर प्रभावित कर रही है।कभी गर्मी में गौरैया जब धूल में लोटती तो माना जाता था बारिश होने वाली है। उसका गायब होना पर्यावरण पर बढ़ते संकट का भी प्रमाण है।20 मार्च को गौरैया दिवस मनाया जाता है।